रथयात्राः2025 प्रथम खण्डः रथ-निर्माण
विश्व का एकमात्र समृद्ध संस्कृतिसंपन्न देश भारत
ही है जहां के ओडिशा राज्य के पुरी धाम में
अनादिकाल से विराजमान हैं श्री जगन्नाथजी। वे
श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर चतुर्धा देवविग्रह के रुप में
दर्शन देते हैं। वे कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म
भी हैं। वे विश्व को शांति,एकता तथा मैत्री का पावन
संदेश देते हैं। उनकी प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया
को अनुष्ठित होनेवाली विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा एक
सांस्कृतिक महोत्सव होता है। वह दशावतार यात्रा
होता है। गुण्डीचा यात्रा होती है। जनकपुरी यात्रा होती
है। वह घोष यात्रा होती है। वास्तव में वह
पतितपावनी यात्रा होती है।वह नव दिवसीय यात्रा होती
है। भगवान जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा
के लिए प्रतिवर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है
जो श्रीमंदिर के समस्त रीति-नीति के साथ वैशाख
मास की अक्षय तृतीया के पावन दिवस से आरंभ
होता है। निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा
है। इस पावन कार्य को वंशानुक्रम से सुनिश्चित
बढईगण ही करते हैं। यह कार्य पूर्णतः शास्त्रसम्मत
विधि से संपन्न होता है। रथनिर्माण विशेषज्ञों का यह
मानना है कि तीनों रथ, बलभद्रजी का रथ तालध्वज
रथ,सुभद्राजी का रथ देवदलन रथ तथा भगवान
जगन्नाथ के रथ नंदिघोष रथ का निर्माण पूरी तरह
से वैज्ञानिक तरीके से होता है। रथ-निर्माण में कुल
लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण
सहयोग करते हैं। प्रतिवर्ष वसंतपंचमी के दिन से
रथनिर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य आरंभ
होता है। जिस प्रकार पंचतत्वों से मानव-शरीर का
निर्माण हुआ है, ठीक उसी प्रकार
काष्ठ,धातु,रंग,परिधान तथा सजावट आदि की
सामग्रियों से रथों का पूर्णरुपेण निर्माण होता है।
पौराणिक मान्यता के आधार पर रथ-यात्रा के क्रम में
रथ मानव-शरीर,रथि मानव-आत्मा,सारथि-मानव-
बुद्धि,लगाम मानव-मन तथा रथ के घोडे मानव-
इन्द्रीयगण के प्रतीक होते हैं। तीनों ही रथ उस दिन
चलतेःफिरते मंदिर होते हैं।
रथों का विवरणः
तालध्वज रथः
यह रथ बलभद्रजी का रथ है जिसे बहलध्वज भी
कहते हैं। यह 44फीट ऊंचा होता है। इसमें 14चक्के
लगे होते हैं। इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्डों
का प्रयोग होता है। इस रथ पर लगे पताकों को नाम
उन्नानी है। इस रथ पर लगे नये परिधान के रुप में
लाल-हरा होता है। इसके घोडों का
नामःतीव्र,घोर,दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ हैं। घोडों का
रंग काला होता है। रथ के रस्से का नाम बासुकी
होता है।रथ के पार्श्व देव-देवतागण के रुप में
गणेश,कार्तिकेय,सर्वमंगला,प्रलंबरी,हलयुध,मृत्युंजय,
नतंभरा,मुक्तेश्वर तथा शेषदेव हैं। रथ के सारथि हैं
मातली तथा रक्षक हैं-वासुदेव।
देवदलन रथ
यह रथ सुभद्राजी का है जो 43फीट ऊंचा होता है।
इसे देवदलन तथा दर्पदलन भी कहा जाता है। इसमें
कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इसपर
लगे नये परिधान का रंग लाल-काला होता है। इसमें
12 चक्के होते हैं। रथ के सारथि का नाम अर्जुन है।
रक्षक जयदुर्गा हैं। रथ पर लगे पताके का नाम
नदंबिका है। रथ के चार घोडे हैं
–रुचिका,मोचिका,जीत तथा अपराजिता हैं। घोडों का
रंग भूरा है। रथ में उपयोग में आनेवाले रस्से का
नाम स्वर्णचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां
हैःचण्डी,चमुण्डी,उग्रतारा,शुलीदुर्गा,वराही,श्यामकाली,मंग
ला और विमला हैं।
नन्दिघोष रथ
यह रथ भगवान जगन्नाथजी का है जिसकी ऊंचाई
45फीट होता है। इसमें 16चक्के होते हैं। इसके
निर्माण में कुल 832 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है।
रथ पर लगे नये परिधानों का रंग लाल-पीला होता
है। इसपर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है।
इसके सारथि दारुक तथा रक्षक हैं –गरुण। इसके चार
घोडे हैःशंख,बलाहक,सुश्वेत तथा हरिदाश्व।इस रथ में
लगे रस्से का नामः शंखचूड है। रथ के पार्श्व देव-
देवियां हैःवराह,गोवर्धन,कृष्ण,गोपीकृष्ण,
नरसिंह,राम,नारायण,त्रिविक्रम,हनुमान तथा रुद्र हैं।
2021 की रथयात्रा 12जुलाई को है इसीलिए 11जुलाई
को आषाढ शुक्ल प्रतिपदा के दिन तीनों ही रथों को
पूर्णरुपेण निर्मितकर रथखला से लाकर उसे पूरी तरह
से सुसज्जितकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने खडा
कर दिया जाएगा जिसमें 12जुलाई को आषाढ शुक्ल
द्वितीया के दिन चतुर्धा देवविग्रहों को पहण्डी
विजयकर रथारुढ किया जाएगा। पुरी के शंकराचार्य
जगतगुरु परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग
गोवर्द्धन मठ से अपने परिकरों के साथ आकर रथों का
अवलोकन करेंगे।पुरी के गजपति महाराजा श्री
दिव्यसिंहदेवजी महाराजा रथों पर छेरापंहरा का पवित्र
दायित्व निभाएंगे। उसके उपरांत आरंभ होगी रथयात्रा।
श्रीमंदिर प्रशासन,पुरी से मिली जानकारी के अनुसार कोविड-
19 गाइडलाइंस के अनुसार 2021 की रथयात्रा में 12जुलाई
को सिर्फ श्रीमंदिर के सेवायतगण ही हिस्सा लेंगे जिसमें
ओडिशा सरकार,स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस प्रशासन
आदि का पूर्ण सहयोग रहेगा।