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महाप्रभु जगन्नाथ


यह वेबसाइट हिन्दी की पहली वेबसाइट है जिसके बनानेवाले अशोक पाण्डेय हैं।

‘‘Bahuda 2025’’

आगामी 5 जुलाई को लक्ष्मी-नारायण रुप में रथारुढ़ होकर बाहुड़ा विजय करेंगे भगवान जगन्नाथ

-अशोक पाण्डेय

गुण्डीचा महोत्सव मनाकर तथा सात दिनों तक विश्रामकर भगवान जगन्नाथ आगामी 5 जुलाई को लक्ष्मी-नारायण रुप में रथारुढ़ होकर बाहुड़ा विजय करेंगे।उस दिन वे रथारुढ़ होकर अपने जन्मवेदी से पुनः अपने श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर वापस लौटेंगे।गुण्डीचा मंदिर को गुण्डीचा घर, ब्रह्मलोक, सुंदराचल तथा जनकपुरी भी कहा जाता है।यह मंदिर लगभग 5 एकड भू-भाग पर निर्मित है।मंदिर के चारों तरफ अतिमोहक बाग-बगीचे हैं जो मंदिर की छटा को और अधिक सुरम्य बना देते हैं।गुण्डीचा मंदिर का निर्माण भी जगन्नाथ पुरी के मुख्य जगन्नाथ मंदिर(श्रीमंदिर )की तरह ही किया गया है। इसका पिछला हिस्सा विमान कहलाता है। उसके अंदर का भाग है जगमोहन।उसके बाद नाट्यमण्डप और उसके बाद है भोगमण्डप।गुण्डीचा मंदिर का निर्माण मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न ने अपनी महारानी गुण्डीचा के नाम पर भगवान विश्वकर्मा द्वारा वहां की महावेदी पर करवाया था।गुण्डीचा मंदिर की रत्नवेदी चार फीट ऊंची तथा 19फीट लंबी है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र श्रद्धाबाली कहलाता है जहां की बालुकाराशि के कण-कण में श्रद्धा का निवास है। पहली बार यहीं पर राजा इन्द्रद्युम्न ने एक हजार अश्वमेध यज्ञ किया था।गुण्डीचा मंदिर भी जगन्नाथ मंदिर पुरी की तरह ही उत्कलीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला का साक्षात उदाहरण है।गुण्डीचा मंदिर भी हल्के भूरे रंग के सुंदर कलेवर में है। यह मंदिर भी जगन्नाथ मंदिर की तरह देश-विदेश से पुरी आनेवाले समस्त जगन्नाथ भक्तों को अपनी भव्यता,प्राकृतिक सुषमा तथा सुरम्य परिवेश को लेकर आकर्षण का केन्द्र है।गौरतलब है कि प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को चतुर्धा देवविग्रहों को श्रीमंदिर से पहण्डी विजय कराकर तथा रथारुढ़ कराकर भक्तगण गुण्डीचा मंदिर लाते हैं जहां पर वे सात दिनों तक विश्राम करते हैं। बाहुड़ा विजय के दिन अर्थात् आगामी 5 जुलाई को गुण्डीचा मंदिर में चतुर्धा देवविग्रहों की सुबह में मंगल आरती होगी।मयलम,तडपलागी,रोसडा भोग होगा।अवकाश, सूर्यपूजा,द्वारपाल पूजा,शेषवेश आदि श्रीमंदिर के निर्धारित विधि- विधान के तहत ही संपन्न होगा।

उस दिन चतुर्धा देवविग्रहों को गोपालवल्लव भोग(खिचडी भोग) निवेदित कराकर एक-एककर पहण्डी विजय कराकर उनके सुनिश्चित रथों पर आरुढ़ किया जाएगा।उस दिन भगवान जगन्नाथ का दिव्य रुप लक्ष्मी-नारायण रुप होता है जिसके दर्शन की लालसा देश-विदेश के समस्त जगन्नाथ भक्तों की रहती है।भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी महाराजा अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में पधारकर तीनों रथों पर चंदनमिश्रित पवित्र जल छिडककर छेरापंहरा करंगे।उसके उपरांत तीनों रथों पर लगीं नारियल की सीढियों को हटा दिया जाएगा तथा रथों को उनके घोड़ों से जोड़ दिया जाएगा।

तीनों रथ क्रमशः तालध्वज, देवदलन तथा नंदिघोष को समस्त जगन्नाथ भक्तगण जय जगन्नाथ तथा हरिबोल के जयघोष के साथ खींचकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के समीप लाएंगे। आगामी 6 जुलाई को रथ पर ही चतुर्धा देवविग्रहों का सोना वेष होगा जिसमें श्रीमंदिर के रत्नभण्डार से कुल बारह हजार तोले के सोने के अनेक आभूषण,हीरे-जवाहरात आदि से चतुर्धा देवविग्रों को नख से लेकर मस्तक तक सुशोभित किया जाता है।वह अभूतपूर्व रुप भगवान जगन्नाथ की ऐश्वर्य लीला का प्रत्यक्ष प्रमाण होता है।अगले दिन अर्थात् 7 जुलाई को चतुर्धा देवविग्रहों का अधरपडा होगा और उसके अगले दिन अर्थात् आगामी 8 जुलाई को नीलाद्रि विजय कर भगवान जगन्नाथ अपने रत्नवेदी पर पुनः आरुढ़ होंगे।

नीलाद्रि विजय की सबसे रोचक बात यह होती है कि तीन देवविग्रहों को देवी लक्ष्मीजी तो रत्नवेदी पर पुनः आरुढ़ होने की अनुमति तो दे देती हैं लेकिन जगन्नाथजी को रोक देती हैं क्योंकि जगन्नाथजी जब रथयात्रा पर गुण्डीचा मंदिर जाते हैं तो अपने बडे भाई बलभद्रजी को,लाडली बहन सुभद्राजी को तथा सुदर्शन जी को साथ लेकर चले जाते हैं लेकिन लक्ष्मीजी को श्रीमंदिर में अकेले ही छोड़ देते हैं।ऐसे में माता लक्ष्मी का क्रोधित होना स्वाभाविक होता है। अब श्रीमंदिर में प्रवेश की अनुमति मां लक्ष्मी जगन्नाथ जी के हाथों से रसगुल्ला भोग ग्रहणकर और प्रसन्न होकर ही अपनी अनुमति रत्नवेदी पर पुनः विराजमान होने के लिए प्रदान करतीं हैं।2025 का नीलाद्रि विजय आगामी 8 जुलाई को है।

उसके उपरांत अपने रत्नवेदी पर पूर्ववत विराजमान होकर भगवान जगन्नाथ चतुर्धा देवविग्रह रुप में अपने भक्तों को पुनः नित्य दर्शन देंगे।–

- अशोक पाण्डेय