अगले 15दिनों के लिए ब्रह्मगिरि का भगवान अलारनाथ मंदिर हुआ गुंजार
-अशोक पाण्डेय
अपनी मानवीय लीला के तहत विगत 4जून को
महास्नान के उपरांत भगवान जगन्नाथ तथा चतुर्धा
देवविग्रह अगले 15दिनों के लिए इलाज के लिए
अपने-अपने बीमारकक्ष में एकांतवास में चले गये हैं
जहां पर उनका आर्युर्वेदसम्मत इलाज आरंभ हो चुका
है। श्रीमंदिर का कपाट आगामी 15दिनों के लिए
समस्त जगन्नाथ भक्तों के लिए बन्द कर दिया गया
है। इस दौरान आगामी 15 दिनों तक पुरी धाम से
लगभग 23किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित भगवान
अलारनाथ मंदिर, ब्रह्मगिरि भक्तों के दर्शन से
गुंजायमान हो चुका है।भगवान अलारनाथ मंदिर का
परिवेश एक आध्यात्मिक परिवेश है।
वैष्णव
मतानुसार ओडिशा के ब्रह्मगिरि के विख्यात भगवान
अलारनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं ब्रह्माजी ने ही
किया था।यह भी जानकारी मिलती है कि 09वीं सदी
में राजा चतुर्थभानुदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया
था जो स्वयं दक्षिण भारत के एक लोकप्रिय वैष्णव
भक्त थे। ऐसी भी जानकारी है कि इस मंदिर का
पूर्णरुपेण विकास 14वीं सदी में हुआ।इस मंदिर में
भगवान अलारनाथ जी की प्रस्तर की काली और
अतिमोहक चतुर्भुज नारायण की प्रतिमा है।
यह
मंदिर मुख्य रुप से श्रीकृष्ण भक्तों का मंदिर
है।ब्रह्मगिरि के अधिसंख्यक स्थानीय लोग वैष्व हैं
जो प्रतिदिन मंदिर में जाकर भगवान अलारनाथ की
पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में आज भी विष्णुभक्त
चतुर्भुज नारायण के रुप में ही भगवान विष्णु की
पूजा करते हैं। ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ मंदिर
की देवमूर्ति काले पत्थर की बनी है जो साढे पांच
फीट की अति सुंदर देवमूर्ति है।इस मंदिर का महत्त्व
प्रतिवर्ष भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा
के क्रम में उस समय बढ जाता है जब प्रतिवर्ष
देवस्नानपूर्णिमा के दिन चतुर्धा देवविग्रहःभगवान
जगन्नाथ,बलभद्र जी,सुभद्रा जी तथा सुदर्शन जी
अत्यधिक स्नान करने के कारण बीमार हो जाते हैं
और उन्हें अगले 15दिनों के लिए इलाज के लिए
उनके बीमार कक्ष में एकांतवास करा दिया जाता है।
बीमार कक्ष में उनका लगातार 15 दिनों तक उनका
आर्युर्वेदसम्मत उपचार होता है। श्रीमंदिर का मुख्य
कपाट अगले 15दिनों के लिए जगन्नाथ भक्तों के
दर्शन के लिए बन्द कर दिया जाता है। उस दौरान
पुरी से लगभग 23किलोमीटर की दूरी पर ब्रह्मगिरि
में अवस्थित भगवान अलारनाथ मंदिर में जाकर
समस्त जगन्नाथ उनके दर्शन भगवान अलारनाथ के
रुप में करते हैं।ब्रह्मगिरि के भगवान अलारनाथ
मंदिर का आध्यात्मिक परिवेश भी अति मोहक
है।यह भी जानकारी मिलती है कि सत्युग में स्वयं
ब्रह्माजी आकर वहां पर प्रतिदिन तपस्या किया करते
थे। कहते हैं कि 1510 ई. में अनन्य श्रीकृष्ण भक्त
महाप्रभु चैतन्यदेवजी स्वयं वहां जाकर भगवान
अलारनाथ के दर्शन किये थे। प्रकृति के सुरम्य
परिवेश में अवस्थित ब्रह्मगिरि पर्वत तथा भगवान
अलारनाथ का मंदिर आज कई दशकों से सैलानियों
का स्वर्ग बन चुका है। मंदिर में भगवान अलारनाथ
को प्रतिदिन खीर का भोग निवेदित किया जाता है
जो प्रसाद के रुप में काफी स्वादिष्ट होता है।
कहते हैं
कि जिसप्रकार श्रीमंदिर पुरी धाम के महाप्रसाद की
जैसी आध्यात्मिक,सामाजिक और धार्मिक मान्यता
है,ठीक उसी प्रकार भगवान अलारनाथ के खीर भोग
की भी वैसी ही मान्यता है। गौरतलब है कि पिछले
कई वर्षों से (नवकलेवर-2015 से लगातार) भगवान
अलारनाथ मंदिर, ब्रह्मगिरि की साफ-सफाई आदि का
जिम्मा ओडिशा सरकार ने अपने हाथों में ले रखा है
जिसके बदौलत पुरी जगन्नाथ मंदिर की तरह ही
सुंदर परिवेश ब्रह्मगिरि भगवान अलारनाथ मंदिर का
बन चुका है। यह भी एक रोचक बात है कि ओडिशा
के जितने भी बडे-बुजुर्ग जगन्नाथ भक्त हैं वे
अणासरा(देवविग्रहों के बीमार के दौरान) उन 15 दिनों
में कम से कम एकबार ब्रह्मगिरि जाकर भगवान
अलारनाथ के दर्शन जगत के नाथ श्री श्री जगन्नाथ
भगवान के रुप में अवश्य करते हैं।मंदिर की ओर से
प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर की ओर से प्रतिवर्ष
यहां की पुष्करिणी में 21दिवसीय चंदनयात्रा भी
अनुष्ठित होती है।
ऐसी जानकारी है कि सत्युग में स्वयं ब्रह्माजी आकर वहां
पर प्रतिदिन तपस्या किया करते थे। भगवान अलारनाथ
मंदिर का निर्माण 09वीं सदी में राजा चतुर्थभानुदेव ने
किया था जो स्वयं दक्षिण भारत के वैष्वभक्त थे।
दक्षिणभारत में आज भी विष्णुभक्त चतुर्भुज नारायण के
रुप में उनकी पूजा करते हैं। ब्रह्मगिरि के भगवान
अलारनाथ मंदिर की देवमूर्ति काले पत्थर की बनी है जो
साढे पांच फीट की है। 1510 ई. में महाप्रभु चैतन्यजी स्वयं
वहां आकर भगवान अलारनाथ के दर्शन किये थे। आज
सैलानियों का स्वर्ग भी है ब्रह्मगिरि। मंदिर में भगवान
अलारनाथ को खीर का भोग प्रतिदिन लगता है जो काफी
स्वादिष्ट होता है। ऐसी मान्यता है कि जिसप्रकार
श्रीमंदिरपुरी के महाप्रसाद की जैसी मान्यता है ठीक उसी
प्रकार भगवान अलारनाथ के खीर भोग की भी मान्यता है।
पिछले कई वर्षों से भगवान अलारनाथ मंदिर, ब्रह्मगिरि
की साफ-सफाई आदि का जिम्मा स्वयं ओडिशा सरकार ने
ले रखा है ।